जलवायु परिवर्तन है खाद्य सुरक्षा की बड़़ी चुनौती
नरजिस हुसैन
रामवीर आज से दस साल पहले दिल्ली की एक पॉश कॉलोनी में रेहड़ी भरकर सब्जियां बेचता था। उसकी सब्जियां बहुत ताजी और जायकेदार हुआ करती थी। लेकिन यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक न चल सका और धीरे-धीरे उसके काम की तरह उसकी आमदनी भी कम होनी शुरू हो गई। अब वह अपनी सब्जियां रेहड़ी पर नहीं बल्कि साइकिल पर लगी एक टोकरी में रखकर बेचने लगा। सब्जियों की कीमत जरूर वही थी लेकिन उनकी क्वालिटी अब वो पहले वाली न रही।
ये कहानी अकेले रामवीर की नहीं बल्कि हर उस छोटे किसान की है जो यमुना या हिंडन के कम तराई वाले इलाकों में फल और सब्जियां उगाकर आस-पास के इलाकों में बेचकर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। रामवीर की जुबानी “कुछ वक्त पहले तक यही सूखी नदी के किनारे इतने उपजाऊ थे कि हम चाहे कोई भी मौसम हो लगातार खूब फल और सब्जियां उगाते थे। अब धीरे-धीरे मिट्टी का उपजाऊपन खत्म होने लगा है तो हमारा काम भी सिमटने लगा।” इस परेशानी से आज दिल्ली सहित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश का किसान जूझ रहा है।
दूषित पानी से बढ़ती परेशानी:
भारत में खाना सब तक बराबर मात्रा में नहीं पहुंच पा रहा है। इसकी एक वजह है गंदे नालों या फैक्ट्रियों के बेकार पानी से होने वाली फसलों की सिंचाई। दिल्ली से लेकर पशिचमी उत्तर प्रदेश तक आगे बढ़ते हुए मैं सालों से देख रही हूं कि किस तरह से किसान यमुना और हिंडन नदी से गंदा पानी अपने खेतों के लिए सिंचाई का पानी लेते हैं। और पशिचमी उत्तर प्रदेश की तरफ बढ़ते जाएं तो फैक्ट्रियों का गंदा और टॉक्सिक पानी भी सिंचाई के इस पानी में शामिल हो जाता है। और फिर यहीं अनाज, सब्जियां और फल आस-पास के इलाकों में ताजे के नाम पर अच्छे पैसों में बेची जाती हैं। इस तरह टॉक्सिक पानी से उगाया खाना लोगों के शरीर में लगातार जा रहा है। इस तरह टॉक्सिक पानी इंसान के शरीर के साथ ही मिट्टी की क्वालिटी को भी खत्म करता है। तो इस तरह टॉक्सिक पानी इंसान और पर्यावरण दोनों को ही तेजी से नुकसान पहुंचा रहा है।
जलवायु परिवर्तन से बिगड़ती खाद्य सुरक्षा:
पिछले कुछ सालों में वातावरण में तेजी से बढ़ता तापमान, बेमौसम बरसात, सूखा, ओला, आंधी और बाढ़ से फसलों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इसकी वजह से लोगों को प्रवास भी करना पड़ा। जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ फसलों पर असर दिख रहा है, बल्कि इसका असर भोजन की उपलब्धता, पहुंच और इस्तेमाल पर भी दिखाई देना शुरू हो गया है। यानी भोजन खाने के लिए अनुउपलब्ध होगा बल्कि उसको उगाना मंहगा होगा और उसमें मौजूद पौष्टक तत्व का स्तर और शरीर को वह ग्रहण की क्षमता भी कम होती जाएगी। भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था में इस बात पर अगर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो कुल आबादी के उन एक तिहाई लोगों तक खाना पहुंचाना और भी मुश्किल हो जाएगा जो पहले से ही कुपोषण और गरीबी की हालत में रह रहे हैं।
इन हालातों में खाध आपूर्ति में भारत को भरी मुसीबतों का सामना करना पद सकता है। चाहे वह फसल हो, मांस हो या मछली। इसके असर से लाखों छोटे किसानों की आय पर प्रभाव पड़ता पड़ने की उम्मीद है। छोटे और लघु किसानों की कम आमदनी से गरीबी बढ़ सकती है। फूड और एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (खाद्य और कृषि संगठन) ने अनुमान लगाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत को 122 मिलियन लोग गहन गरीबी में देखने को मिल सकते हैं। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण ने खेती की आय में कमी होने की बात को दोहराया है। इससे उपभोक्ता की क्रय शक्ति कम होगी और भोजन के लोगों तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
यही नही, पोषण में गिरावट भी देखने को मिलने के आसार हैं। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) या सरकारों के जलवायु परिवर्तन के लिए बने पैनल के अनुसार, साल 2050 तक भारत की उपज में 10-25 प्रतिशत तक की कमी देखने को मिल सकती है। इसका प्रभाव मांग और आपूर्ति दोनों को झेलना होगा। इसलिए, भविष्य के लिए खुद को तैयार करने के लिए भारत को तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।
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